उत्तराखंड

सर्वोदय से विकास की यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त

सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं, जीवन के अंतिम क्षणों तक जुड़ी रही समाज सेवा में

विजय भट्ट, देहरादून

सर्वोदय सेवक स्वर्गीय मानसिंह रावत की पत्नी शशि प्रभा रावत अब हमारे बीच नहीं रहीं। उनका जीवन केवल एक पत्नी एक मां के रूप में ही नहीं बल्कि समाज के प्रति उनके योगदान के लिए भी याद किया जाएगा। शशि प्रभा रावत का जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सामाजिक न्याय सशक्तिकरण की दिशा में कार्य किया। उनका समर्थन हमेशा ही मान सिंह रावत को समाज सेवा के प्रति प्रेरित करता रहा। उनकी मानवता और सरलता ने उन्हें समाज में विशेष स्थान दिलाया। शशि प्रभा रावत का निधन एक ऐसी कमी छोड़ गया है जिसे भरना कठिन होगा। वह हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी। उनकी शिक्षाएं और मूल्यों के साथ उनके योगदान को याद करते हुए हम उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

शशि प्रभा रावत सरला बहन की शिष्य थी।सरला बहन के विचारों से प्रेरित होकर शशि जी ने अपने आसपास के जीवन में बदलाव लाने के लिए निरंतर काम किया। सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत के मार्गदर्शन में उन्होंने समाज में कई परिवर्तन के प्रयास किए। उनका निधन एक गहरी कमी छोड़ गया है, लेकिन उनके द्वारा स्थापित मूल्यों और आदर्शों को हम हमेशा याद रखेंगे। वह एक दीप शिखा की तरह थी जो अंधकार में भी प्रकाश फैलाती रही, उनकी यादें और कार्य हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। सर्वोदय सेवक मानसिंह रावत ने कोटद्वार भाबर क्षेत्र के हल्दूखाता में बोक्सा जनजाति के बच्चों के लिए और उनके विकास के लिए एक स्कूल की स्थापना की। उनका जीवन बोक्सा समाज के लोगों और दबे कुचले वर्ग के लोगों को आगे बढ़ाने के लिए रहा।

जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित सर्वोदय सेवक स्वर्गीय मानसिंह रावत की धर्मपत्नी शशि प्रभा रावत का जन्म जनवरी 1935 में बागेश्वर के गरुड़ में हुआ था। वह अल्मोड़ा के सरला बहन आश्रम में रहती थी। जहां मानसिंह रावत से उनकी मुलाकात हुई और 1955 में दोनों ने शादी कर ली। अपने पति के साथ सक्रिय भूमिका निभाते हुए वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलकर अपना सर्वस्व समाज सेवा में लगा दिया। नशाबंदी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने समाज को नई दिशा दिखाने का कार्य किया। कोटद्वार भाबर में बोक्सा जनजाति के उत्थान में उनकी अहम भूमिका रही। जीवन के अंतिम क्षणों तक बोक्सा जनजाति के स्कूल के संचालन के साथ ही सर्वोदय के कार्यों को देख रही थी। 70 के दशक में गढ़वाल मंडल में चले शराब विरोधी आंदोलन को नई दिशा दी। शशि प्रभा ने मानसिंह रावत की सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने 1955 में जीवनसाथी चुना था। तब से वह एक साथ सर्वोदय और नशा मुक्ति कार्य को आगे बढ़ा रहे थे।

बोक्सा जनजाति के बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जुड़ने का कार्य सर्वोदय सेवक मानसिंह व शशि प्रभा ने किया, वह किसी मिसाल से काम नहीं। उन्होंने 57 वर्ष पहले कोटद्वार में बोक्सा जनजाति के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने के लिए प्राथमिक पाठशाला शुरू की थी जो अब जूनियर हाई स्कूल हो गया है। वर्तमान में बोक्सा जनजाति विद्यालय में करीब 300 से 400 बच्चे पढ़ रहे हैं। भाबर क्षेत्र में बसे बोक्सा जनजाति के लोगों की जमीनों पर अन्य लोग जब अतिक्रमण कर रहे थे उस समय भी मानसिंह रावत ने उनके संरक्षण के लिए आवाज उठाई थी, और उनका संरक्षण किया था। वह तब से बोक्सा जनजाति के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रहे थे। अब उनके परिजन इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।

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