विदेश की धरती से ऐतिहासिक पहल
गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाओं को AI युग से जोड़ने के लिए “भाषा डेटा कलेक्शन पोर्टल” का शुभारंभ

मुख्यमंत्री जी ने अपने संदेश में कहा, “जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति जीवित है। उत्तराखंड सरकार सदैव अपनी मातृभाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए तत्पर है और इस ऐतिहासिक पहल में पूर्ण सहयोग करेगी।”
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (वीडियो संदेश), पद्मश्री प्रीतम भारतवाण (लोकगायक, जागर एवं ढोल सागर अकादमी), सचिदानंद सेमवाल (AI आर्किटेक्ट, अमेरिका), अमित कुमार, सोसाइटी के अध्यक्ष बिशन खंडूरी, टोरंटो से मुरारीलाल थपलियाल, एवं भारत दूतावास के प्रतिनिधिगण।
पद्मश्री प्रीतम भारतवाण ने कर्णप्रयाग (बद्रीनाथ क्षेत्र) से ऑनलाइन जुड़कर अपने संदेश में कहा, “जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान जीवित है। भाषा बचेगी तो संस्कार भी बचेंगे।” उन्होंने इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए अपनी जागर एवं ढोल सागर अकादमी की ओर से निरंतर सहयोग देने की घोषणा की।
“यह केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ने और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रखने का एक जन-आंदोलन है। मेरे 20 वर्षों से अधिक के इंजीनियरिंग अनुभव और 4 वर्षों से अधिक के AI अनुभव का उपयोग यदि अपनी मातृभाषा के संरक्षण में हो रहा है, तो इससे बड़ा सौभाग्य मेरे जीवन के लिए और क्या होगा। इस पहल को हम एक सामाजिक आंदोलन के रूप में चलाएँगे और जो भी इसमें जुड़ना चाहेगा उसका स्वागत है — चाहे वह इंजीनियर हो, भाषा विशेषज्ञ, लोक कलाकार, समाजसेवी या व्यवसायी।
कार्यक्रम के दौरान सोसाइटी ने यह भी घोषणा की कि
कनाडा और अमेरिका में “AI सक्षम भाषा शिक्षण केंद्र” (AI-enabled Learning Centers) स्थापित किए जाएँगे, जहाँ प्रवासी बच्चे आधुनिक तकनीक की सहायता से गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाएँ सीख सकेंगे। ये केंद्र पद्मश्री प्रीतम भारतवाण जी की जागर अकादमी से संबद्ध रहेंगे।
सोसाइटी के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे
शिव सिंह ठाकुर (उपाध्यक्ष), विपिन कुकरेती (महामंत्री), उमेद कठैत, जगदीश सेमवाल, गिरीश रतूड़ी, रमेश नेगी, जीत राम रतूड़ी, विनोद रौंतेला, तथा Devbhoomi Uttarakhand Cultural Society Canada के सभी सदस्यगण।
मस्तू दास, शक्ति प्रसाद भट्ट, के. एस. चौहान तथा प्रोजेक्ट की कोर टीम, जिन्होंने इस ऐतिहासिक पहल को दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कनाडा के स्थानीय मीडिया, भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि, AI विशेषज्ञों, सांस्कृतिक संगठनों और बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।



