देहरादून। चकराता के निकट नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित देववन में देश का पहला क्रिप्टोगेमिक गार्डन तैयार किया गया है। तीन एकड़ में फैले इस गार्डन में क्रिप्टोग्राम की लगभग 76 प्रजातियां हैं। क्रिप्टोगेमिक अर्थात बिना बीज वाले पादपों की प्रजातियां। इनमें कोई बीज, कोई फूल आदि नहीं होते हैं। शैवाल, लाइकेन, फर्न, कवक क्रिप्टोगैम के प्रसिद्ध समूह हैं। क्रिप्टोगैम को जीवित रहने के लिए नम परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।
रविवार को क्रिप्टोगैमिक गार्डन का उद्घाटन किया गया। इस गार्डन को वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी ने तैयार किया है। देववन इलाके में देवदार और ओक के प्राचीन जंगल हैं। प्रदूषण मुक्त क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र क्रिप्टोगैम के विकास के लिए मुफीद है।
क्रिप्टोगैम में शैवाल का विशेष महत्व है। इसकी कई प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। इनमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन और विटामिन ए, बी, सी, और ई प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही ये आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिजों के भी अच्छे स्रोत हैं। शैवाल का उपयोग जैव उर्वरकों, तरल उर्वरकों के रूप में भी किया जाता है। यह मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन के स्तर को बढ़ाता है।
बाजार में इनकी अच्छी डिमांड है। हैदराबादी बिरयानी और गलौटी कबाब जैसे प्रसिद्ध पकवानों में इन्हें मसालों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यही नहीं, स्थानीय लोग कई लाइकेन प्रजातियों का उपयोग दवाओं के रूप में भी करते हैं।
मुख्य वन संरक्षक, अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि क्रिप्टोग्राम ब्रायोफाइट्स प्रदूषण को नियंत्रित करने में कारगर हैं। ये मिट्टी के कणों को बांधकर कटाव को रोकते हैं। वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को भी कम करते हैं। लाइकेन वायुमंडलीय प्रदूषकों के प्रति अत्याधिक संवेदनशील होते हैं।